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Category: Writing and Poetry

New poem in hindi

कवि कर्कश काग

कहे कवि कर्कश स्वर में , कागा मेरो साथी है,

ना सुर उसमें ना सुर मुझमें , हमें एक बनाती है ||

जो जन को मैं जानवाउ, बीती अपनी उन्हें सुनाऊं,

काग जान मोहे टारे है , कर्कश कह के पुकारे हैं ||

बुरी दशा अपने मन की हस हस जो मैं सुनाऊं,

कह दूं जो उनके मन की कोकिल मैं कहलाऊं ||

पर बदलूं कैसे सच्चाई को ,काग को मैं साथी हूँ ,

उजाड़ू जड़ चेतन मन सबके , ऐसी चलती आंधी हूँ ||

मीठे बोल मैं बोलूं सबसे , जान सत्य ना मीठा है,

कोकिल ऐसी दशा मेरी , काग साथ मैंने छोड़ा है ||

मानव हूँ मैं मानव चाहूं , कहने को बातें मन की, 

बना मोहे कोकिल अपने सो, दृष्टि छीनू मैं जन

 की||


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